कुबेर पूजा और व्रत कथा।
प्रिय पाठकों जैसा की आप सभी जानते हैं हिंदू धर्म में कुबेर जी को धनाध्यक्ष अथवा धन के राजा के नाम से जाना जाता है तथा कार्तिक मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी / धनत्रयोदशी अथवा धनतेरस के दिन उनकी विधिवत पूजा की जाती है ताकि उनकी कृपा हम पर बनी रहे और हमें आर्थिक कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।
आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि कुबेर जी की पूजा एवं व्रत किस प्रकार किए जाने चाहिए और हम पौराणिक कथाओं के माध्यम से यह भी जानेंगे कि उनकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई एवं उनकी इन कथाओं को पढ़ने एवं सुनने का क्या महत्व है। तो आइए सबसे पहले जानते हैं यह कथा क्या है।
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कुबेर उत्पत्ती कथा
ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तब उन्होंने सबसे पहले दिशाओं की रचना की। उन्होंने दसों दिशाओं की लिए दस कन्याओं का निर्माण किया जो उनकी पुत्रियां कहलाती हैं। इन कन्याओं में उत्तरा नाम की कन्या उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करती है जिसका विवाह कुबेर जी के साथ कर दिया गया और इस प्रकार वे उत्तर दिशा के लोकपाल अथवा दिगपाल बनाए गए।
जिस समय कुबेर जी की उत्पत्ति हुई उस समय पर वह वायु रूप में ही थे अर्थात उनका भौतिक शरीर नहीं था। उन्हें वह बाद में प्राप्त हुआ पहले वह परमपिता के अंतर्गत ही वायु के रूप में विराजमान थे और आवश्यकता होने पर बाहर आकर वे क्षेत्र देवता की भूमिका निभाते थे ब्रह्मा जी ने आगे इसे विस्तार से बताया है।
एक बार ब्रह्माजी में इस ब्रह्मांड को निर्माण करने की इच्छा हुई और उसी समय उनके मुख से वायु बाहर निकली जिसने स्थूल रूप धारण कर लिया और वह बहुत ही तीव्र गति से बहने लगी और देखते ही देखते चारों ओर धूल फैलने लगी। तब ब्रह्मा जी ने वायु रूपी पुंज से कहा ‘ठहरो शांत हो जाओ और रूप धारण करो’, उनके ऐसा कहने के तुरंत बाद ही वायु ने शरीर धारण किया और वही स्वरूप कुबेर के रूप में प्रकट हुआ।
ब्रह्मा जी ने कहा कि सभी देवताओं के पास जो भी धन है उस धन की रक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है और इस संसार में धन की रक्षा का उत्तरदायित्व निभाने के कारण तुम ‘धनपति’ के नाम से जाने जाओगे।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उन्हें एकादशी तिथि का अधिष्ठाता बनाया और एकादशी तिथि पर जो भी मनुष्य अग्नि में पकाए बिना अपने आप पके हुए फल खा कर नियम के साथ व्रत करता है उस पर कुबेर जी बहुत प्रसन्न होते हैं एवं उनकी सभी इच्छाओं को पूर्ण कर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
अब इसकी फलश्रुति सुनो धन के स्वामी के शरीर धारण करने की यह कथा सभी पापों को खत्म कर देती है। जो कोई भी पूरी श्रद्धा एवं भक्ति भाव से इसे सुनता या पढता है उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं और अंततः वह स्वर्ग में जाकर निवास करने योग्य हो जाता है।
कुबेर व्रत कथा
कुबेर जी को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में धनदव्रत का विधान बताया गया है। फागुन महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को उपवास करके श्री हरि विष्णु को प्रणाम करना चाहिए साथी ही शिवजी की भी पूजा करें क्योंकि वे धनाध्यक्ष के आराध्य है और इसी समय में शिव जी का प्रदोष व्रत एवं पूजन भी किया जाता है और उसके बाद यह व्रत आरंभ करना चाहिए।
सबसे पहले यक्षपति कुबेर की मूर्ति या तस्वीर ले आऐं और फिर उसकी दीप, धूप, गंध, पुष्प आदि से भक्तिभाव से पूजा करें। इसके पश्चात हर महीने आने वाली शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर उनकी पूजा करें। दिनभर उपवास रखें या फिर एक वक्त भोजन करें।
इस प्रकार एक वर्ष पूर्ण हो जाने पर फिर से कुबेर जी की प्रतिमा की पंचामृत आदि पवित्र द्रव्यो से षोडशोपचार से अलग-अलग प्रकार के भोग लगा कर पूजन करें (शास्त्रों में सोने की प्रतिमा बनाने का विधान है किंतु व्यक्ति को अपनी आर्थिक परिस्थिति के अनुसार प्रतिमा का चयन करना चाहिए क्योंकि किसी भी व्रत को करने के लिए सबसे जरूरी होती है भक्ति भावना और समर्पण और इन्हें ही सर्वोपरि समझना चाहिए )।
यदि संभव हो तो 12 या 13 लोगों को भोजन कराकर यथाशक्ति वस्त्र, माला, गंध आदि का दान करें और फिर यथाशक्ति ब्राह्मणों को दक्षिणा दें और उपरोक्त प्रतिमा भी उन्हें दान करके नमस्कार करें। इसके बाद अपने परिवार के साथ भोजन ग्रहण करें। इस व्रत के फल से मनुष्य को संपन्नता प्राप्त होती है और व्यक्ति सभी प्रकार के सुखों को भोगता है।
नोट: नीचे दी गई पूजा विधि से धनतेरस के दिन प्रदोष काल में भी पूजा करनी चाहिए।
पूजा विधि
सबसे पहले पूजा स्थान पर एक स्वच्छ कपड़ा बिछा लें उस पर गणेश जी की प्रतिमा रखें और साथ में ही कुबेर जी की तस्वीर या प्रतिमा रखें यदि आप कुबेर यंत्र की स्थापना भी करना चाहतें है तो उसे पहले गंगा जल से शुद्ध करके चौकी पर रख लें तत्पश्चात घर की उत्तर दिशा में एक दिया जलाएँ और धूप, दीप, गंध, पुष्प नैवेद्य अर्पण करें।
प्रतिमा के सामने बैठकर नीचे दिए गए प्रत्येक मंत्र का 108 बार जाप करें और उसके पश्चात कर्पूर आरती करके प्रसाद वितरण करें।
कुबेर मंत्र
श्री गणेशाय नमः।।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।।
ॐ श्री कुबेराय नमः।।
अथवा
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिम् मे देहि दापय स्वाहा।।