महालक्ष्मी स्तोत्र
प्रिय पाठकों आज हम महालक्ष्मी जी के एक सिद्ध स्तोत्र के बारे में जानेंगे जो माता लक्ष्मी की असीम कृपा प्रदान करता है और दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय स्तोत्र का पाठ उन्हें अत्यंत प्रसन्न करता है।
इस स्तोत्र का उल्लेख नारद जी और प्रभु नारायण के बीच हुए संवाद में आता है जब नारद जी ने उनसे पूछा कि लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना कैसे की जाती है? उनकी स्तुति किसने की और किस स्तोत्र द्वारा उनकी आराधना की जाती है?
उन्हें ज्ञात हुआ कि सबसे पहले भगवान नारायण ने लक्ष्मी जी की पूजा की उसके पश्चात ब्रह्मा जी ने और उसके बाद इंद्र आदि ने उनकी पूजा की।
नारायण ने नारद जी से कहा की एक बार इंद्र ने गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव और पार्वती की पूजा अर्चना की तत्पश्चात ब्रह्मा जी द्वारा बताए हुए सामवेदोक्त ध्यान को सुनकर माता लक्ष्मी का ध्यान किया और ब्रह्मा जी द्वारा बताए गए वैदिक स्तोत्रराज से माता लक्ष्मी की स्तुति की जो सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है।
इंद्र उवाच
ॐ नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः।
कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नमः।।
पद्मपत्रेक्षणायै पद्मास्यायै नमो नमः।
पद्मसनायै पद्ममिन्यै वैष्णव्यै च नमो नमः।।
सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नमः।
सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नमः।।
हरीभक्तिदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नमः।
कृष्णवक्षःस्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः।।
कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नाढ्यायै नमो नमः।
संपत्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमः।।
सस्याधिष्ठातृदेव्यै सस्यलक्ष्म्यै नमो नमः।
बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नमः।।
वैकुण्ठे च महालक्ष्मीर्लक्ष्मीः क्षिरोदसागरे।
स्वर्ग लक्ष्मी रिन्द्रग्रेहे राजलक्ष्मीर्नृ पालये।।
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता।
सुरभिः सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी।।
अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये।
स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता।।
त्वं हि विष्णुस्वरुपा च सर्वधारा वसुंधरा।
शुद्धसत्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा।।
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना।
परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा।।
परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा।।
यया विना जगत्सर्वं भस्मोभूतमसारकम्।
जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना।।
सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी।
यया विना न संभाष्यो बान्धवैर्बान्धवः सदा।।
त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्तः सबान्धवः।
धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी।।
स्तनंधयानां त्वं माता शिशूनां शैशवे यथा।
तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वविश्वतः।।
त्यक्तस्तनो मातृहीनः स चेज्जीवति दैवतः।
त्वया हीनो जनः कोऽपि न जीवत्येव निश्चितम्।।
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मे प्रसन्ना भवाम्बिके।
वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि।।
वयं यावत्त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुकाः।
सर्वसंपद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये।।
राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि
कीर्तिं देहि धनं देहि पुत्रान्मह्यं च देहि वै।।
कामं देहि मतिं देहि भोगान्देहि हरिप्रिये।
ज्ञानं देहि च धर्मं च सर्वसौभाग्यमीप्सितम्।।
सर्वाधिकारमेवं वै प्रभावं च प्रतापकम्।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च।।
इत्युक्त्वा तु महेन्द्रश्च सर्वेः सुरगणैः सह।
ननाम साश्रुनेत्रोऽयं मूर्ध्ना चैव पुनः पुनः।।
फलश्रुति
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
कुबेरतुल्यः स भवेद्राजराजेश्वरो महान्।।
कुबेरतुल्यः स भवेद्राजराजेश्वरो महान्।।
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत्सोऽपि कल्पतरुर्नरः।
पञ्चलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।।
सिद्धं स्तोत्रं यदि पक्ष्येमासमेकं च संयतः।
महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशयः।।
II इति श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे महालक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम्II
हिंदी अनुवाद
कमलवासिनी को नमस्कार है देवी नारायणी को बार-बार नमस्कार है।
श्री कृष्ण की प्रिया तत्व स्वरूप पद्मा को बार-बार नमस्कार है।।
कमल पत्र के जेसी आँखों वाली कमलमुखी लक्ष्मी को नमस्कार है।
कमलासनवाली पद्मीनी वैष्णवी को बार-बार नमस्कार है।।
सर्व संपत्ति स्वरूप और सब कुछ प्रदान करने वाली को नमस्कार है।
सुख देने वाली मोक्ष देने वाली सिद्धि देने वाली महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है।।
ईश्वर की भक्ति देने वाली एवं हर्ष देने वाली को नमस्कार है।
श्री कृष्ण के वक्षस्थल पर विराजमान श्री कृष्ण स्वामिनी को नमस्कार है।।
श्री कृष्ण की शोभा स्वरूप और रत्नभूषिता को नमस्कार है।
संपत्ति की अधिष्ठात्री महादेवी को नमस्कार है।।
हरे-भरे क्षेत्रों की अधिष्ठात्री देवी तथा सस्यलक्ष्मी को नमस्कार है।
जो बुद्धि का रूप है और बुद्धि देने वाली महालक्ष्मी को नमस्कार है।।
वैकुंठ में तुम महालक्ष्मी हो क्षीर सागर में लक्ष्मी हो।।
इंद्र के घर में तुम स्वर्ग लक्ष्मी हो राजभवन में राजलक्ष्मी हो।।
गृहस्थों के घरों में गृह लक्ष्मी हो उनकी गृहदेवता हो गायों की माता सुरभि भी हो।
यज्ञ के पास दक्षिणा रूप में निवास करती हो।।
देवों की माता अदिति में और कमलगृह में कमला हो।
तुम हवी देते समय स्वाहा हो और कव्य देते समय स्वधा हो।।
तुम ही विष्णुमयी हो और सभी का आधार वसुंधरा हो।
तुम शुद्ध सत्ववाली हो और नारायण की पूजा में हमेशा तत्पर रहती हो।।
तुम क्रोध और हिंसा से परे हो वर देने वाली शुभ मुखी हो।
तुम परमार्थ प्रदान करने वाली हरिभक्ति देने वाली सर्वोत्तमा हो।।
तुम्हारे बिना संसार भस्मीभूत हो जाता हैl
तुम्हारी अनुपस्थिति में प्राण होते हुए भी संसार निष्प्राण शव के सामान हो जाता हैll
तुम सबमें श्रेष्ठ हो और बंधु स्वरूप हो।
तुम्हारे बिना भाइयों में भी बोलचाल नहीं रह जाती।।
तुम्हारे अभाव में मनुष्य बंधुहीन और तुम्हारी उपस्थिति में बंधुयुक्त हो जाता है।
इस प्रकार धर्म अर्थ काम मोक्ष कि तुम कारक हो।।
तुम शिशु अवस्था में बच्चों को दूध पिलाने वाली माता जैसी हो।
तुम हमेशा समस्त संसार की माता हो।।
क्योंकि माता का स्थान छूट जाने पर या वियोग होने पर देव कृपा से कोई जीवित रह सकता है।
परंतु तुमसे वियोग होने पर कोई निश्चित ही जीवित नहीं रह सकता।।
हे अंबे, अत्यंत प्रसन्न स्वरूप होने के कारण मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।
शत्रुओं ने जो मेरी वस्तुएँ छीन ली है उन्हें मुझे वापस लौटा दो।।
हे हरिप्रिया हम लोग जब तक तुमसे रहित हैं।
तब तक हम तुच्छ, हीन, भिक्षुक और संपत्ति हीन है।।
इसलिए हे सुरेश्वरी हमें राज्य, बल और श्री प्रदान करें।
कीर्ति और धन सहित अनेक पुत्र प्रदान करें।।
से हरिप्रिया हमारी इच्छाएँ पूर्ण करो हमें बुद्धि प्रदान करो।
भोग प्रदान करो तथा ज्ञान और धर्म के साथ समस्त सौभाग्य प्रदान करें।।
इस प्रकार सभी अधिकार, प्रभाव, बल, कीर्ति, युद्ध पराक्रम और संपूर्ण ऐश्वर्य प्रदान करो।।
इतना कहकर महेंद्र ने समस्त देवों के साथ आँखों में आँसू लिए हुए उन्हें बार-बार प्रणाम किया।।
फलश्रुति
जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में इस महान पुण्य दाई स्तोत्र का पाठ करेगा।
वह कुबेर के समान राजराजेश्वर हो जाएगा।।
यदि वह व्यक्ति सिद्ध स्तोत्र का पाठ करेगा।
तो कल्पवृक्ष के सामान सर्वश्रेष्ठ हो जाएगा।।
पाँच लाख बार जप करने से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है।
जो एक महीने तक इस सिद्ध स्तोत्र का संयमपूर्वक रोज पाठ करेगा
वह राजा सामान हो जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।।
वह राजा सामान हो जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।।