एकादशी व्रत की महिमा
महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों में पड़ने वाली एकादशी तिथि को यह व्रत किया जाता है। इसके मुख्य देवता श्री हरि विष्णु हैं और यह व्रत करने से श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और यह व्रत भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्रदान करने वाला है।
पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी (अमांत कैलेंडर के कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की) उत्पन्ना एकादशी से इस व्रत को धारण करना चाहिए और फिर 1 वर्ष तक सभी एकादशीयों को व्रत करना चाहिए उसके बाद मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में आने वाली मोक्षदा एकादशी के दिन विधिपूर्वक इसका उद्यापन करना चाहिए।
इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी 23 नवंबर 2019 को है
इस दिन से यह व्रत आरंभ करें।
एकादशी तिथि का चयन कैसे करें ?
प्रिय पाठकों तिथि का सही चयन करना बहुत जरूरी है इस विषय में पुराणों में नियम स्पष्ट किए गए हैं:
एकादशी तिथि के बारे में कहा गया है कि यदि सूर्योदय के समय दशमी तिथि विद्यमान हो और बाद में एकादशी तिथि हो तो ऐसी तिथि को नहीं लेना चाहिए व्रत के लिए सूर्योदय के समय उपस्थित एकादशी को ही लेना चाहिए।
यदि सूर्योदय पर दशमी हो और अगले दिन सूर्योदय से पहले ही एकादशी समाप्त हो जाए तब भी दूसरे दिन द्वादशी को ही व्रत करना चाहिए।
यदि सूर्योदय के समय एकादशी हो और अगले दिन भी सूर्योदय के समय एकादशी तिथि एक दंड के लिए भी विद्यमान हो तो व्रत के लिए दूसरे दिन वाली तिथि को ग्रहण करना चाहिए।
नोट : जब एकादशी तिथि 2 दिन आती है तब पहले दिन स्मार्त एकादशी और दूसरे दिन वैष्णव एकादशी मानी जाती है। जो लोग शिव पंथ को मानने वाले हैं वह स्मार्त एकादशी का उपवास करते हैं और जो लोग वैष्णव पंथ को मानने वाले हैं वे वैष्णव एकादशी का उपवास करते हैं। कहीं-कहीं पर 2 दिन भी उपवास किया जाता है सांसारिक लोग ज्यादातर वैष्णव एकादशी का उपवास करते हैं।
एकादशी व्रत विधि और नियम
यह व्रत तीन दिनों में पूर्ण होता है इन तीन दिनों में चार समय का भोजन नहीं करना चाहिए। इसका अर्थ यह होता है कि यह व्रत दशमी तिथि से शुरू हो जाना चाहिए।
दशमी तिथि को रात में उपवास करना चाहिए। एकादशी तिथि को दोनों समय निराहार रहकर (फल खाकर) व्रत करना चाहिए और द्वादशी तिथि को दिन में पारण के समय यानी उपास छोड़ने के समय बस एक बार भोजन करना चाहिए।
जो कोई भी व्रत का पालन करता है उसे इस तरह उपवास करना चाहिए यदि शारीरिक शक्ति ना हो तो व्यक्ति एक वक्त खाना खा कर भी उपवास कर सकता है किंतु रात में भोजन नहीं करना चाहिए।
नोट: उपवास का अर्थ होता है कि मनुष्य पाप कर्मों से दूर रहे सदाचार का पालन करें सिर्फ अपने शरीर को भूखा रखने का मतलब उपवास करना नहीं होता है। एकादशी तिथि को शरीर पर तेल ना लगाएं।
व्रत विधि
एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर नहाने से पहले अपने शरीर पर नीचे दिए गए मंत्र को पढ़कर मिट्टी लगाएँ और फिर स्नान करें।
मंत्र इस प्रकार हैं
अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुंधरे।
मृत्तिके हर में पापं यंमया पूर्वसंचित्तं।।
अर्थ : हे वसुंधरा तुम्हारे ऊपर घोड़े एवं रथ चला करते हैं श्री हरि विष्णु ने वामन अवतार लेकर तुम्हें अपने पैरों से नापा था।
मृत्तिके अब तक मैंने जो भी पाप संजीत किए हैं तुम उनका हरण कर लो।।
व्रत करने वाले व्यक्ति को इस दिन अपनी इंद्रियों पर संयम रखना चाहिए तथा झूठ बोलने वाले से, दुष्टों से और पाखंडी लोगों से दूर रहना चाहिए इस दिन सोना नहीं चाहिए।
सबसे पहले श्री हरि विष्णु जी की पूजा करें। शंख में जल लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करें :
ओम नमो नारायणाय।।
फिर धूप, दीप, गंध, तुलसी दल अर्पित कर भगवान को नैवेद्य अर्पण करें। दिन भर मंत्रों का जाप करें और रात्रि में जागरण करें इस दिन जागरण करने का बहुत ही अधिक महत्व बताया गया है।
जो व्यक्ति रात को जागरण के साथ विष्णु सहस्त्रनाम और गीता का पाठ करता है उसे वेदों में बताए गए सभी पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है। जो इस दिन जागरण करता है वह अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करता है और जो इसके जागरण के महत्व को पढ़ता है वह अपनी 100 पीढ़ियों के पूर्वजों का उद्धार कर देता है।
द्वादशी के दिन सुबह स्नान आदि के बाद भगवान को धूप, दीप, गंध एवं नैवेद्य दें उसके पश्चात जरूरतमंदों को दान करें। व्रत करने में जो कुछ भी त्रुटियां रह गई हो उसके लिए क्षमा मांगे और भोजन करके व्रत का पारण करें।
व्रत फल
एकादशी व्रत का पालन करने वाला व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है और दोबारा जन्म नहीं लेता।
ग्रहण के समय स्नान और दान करने से जो पुण्य मिलता है वह एकादशी के व्रत से प्राप्त हो जाता है।
अश्वमेध यज्ञ करने पर जो फल मिलता है उससे भी 100 गुना अधिक फल इस व्रत से मिलता है।
जो एकादशी की रात को जागरण करता है उसके पूर्वजन्म और इस जन्म के सभी संचित पापों का नाश हो जाता है।
जो इस महात्मय को पढ़ता या सुनता है वह सभी पापों से मुक्त होकर सद्गति को प्राप्त होता है और विष्णु लोक चला जाता है।